सेना ने शिमला में आयोजित किया “भारत-तिब्बत संबंध” विषयक संगोष्ठी: साझा विरासत और रणनीतिक समझ पर केंद्रित “Interwoven Roots”
शिमला, हिमाचल प्रदेश, 28 जून 2025:
राष्ट्रीय सुरक्षा में सांस्कृतिक समझ को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए, भारतीय सेना की सेंट्रल कमांड द्वारा शिमला स्थित डान्फे हॉल में एक दिवसीय संगोष्ठी “Interwoven Roots: Shared Indo-Tibetan Heritage” का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में विद्वानों, रणनीतिकारों और वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने भाग लिया और भारत-तिब्बत के गहरे सभ्यतागत संबंधों एवं उनकी वर्तमान सीमा प्रबंधन व क्षेत्रीय स्थिरता में प्रासंगिकता पर विचार विमर्श किया।
संगोष्ठी के आयोजन का मुख्य उद्देश्य इस बढ़ती स्वीकार्यता को मंच प्रदान करना था कि रणनीतिक दृष्टिकोण में सांस्कृतिक गहराई और ऐतिहासिक निरंतरता को शामिल करना, विशेष रूप से हिमालयी सीमावर्ती क्षेत्रों में, राष्ट्रीय सुरक्षा का एक आवश्यक तत्व है। भारत और तिब्बत न केवल एक भौगोलिक सीमा साझा करते हैं, बल्कि आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक और सभ्यतागत मूल्यों की एक समृद्ध और साझा विरासत में भी भागीदार हैं।
सीमा पर रक्षा और विकास दोनों की जिम्मेदारी निभाने वाली भारतीय सेना ने सीमाओं की सुरक्षा के प्रति समग्र दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की दिशा में नेतृत्व किया है — जिसमें भूगोल और रणनीति के साथ-साथ सांस्कृतिक समझ, सामुदायिक सहभागिता और ऐतिहासिक दृष्टिकोण को महत्व दिया जा रहा है। इस संगोष्ठी को रणनीतिक अध्ययनों और सांस्कृतिक शोध के बीच एक पुल के रूप में कल्पित किया गया था जिससे रक्षा पेशेवरों को ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि के आधार पर समकालीन चुनौतियों का समाधान विकसित करने में सहायता मिल सके।
इस संगोष्ठी का शुभारंभ सेंट्रल कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता, पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम द्वारा उद्घाटन भाषण के साथ हुआ। उन्होंने राष्ट्रीय रणनीति में सांस्कृतिक कूटनीति की भूमिका पर बल देते हुए सेना की भारत की भौगोलिक और सभ्यतागत अखंडता की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराया।
संगोष्ठी दो मुख्य सत्रों में आयोजित हुई:
सत्र-I: भारत-तिब्बत संबंध – सभ्यतागत, आध्यात्मिक और आर्थिक दृष्टिकोण
श्री क्लॉड अर्पी ने उत्तरी भारत और पश्चिमी तिब्बत के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों पर प्रकाश डाला।
डॉ. शशिबाला ने साझा बौद्ध परंपराओं और पवित्र स्थलों की विरासत को रेखांकित किया।
डॉ. अपर्णा नेगी ने शिपकी ला जैसे प्राचीन व्यापार मार्गों की आधुनिक प्रासंगिकता पर विचार प्रस्तुत किया।
सत्र-II: सीमा प्रबंधन और रणनीतिक चुनौतियाँ
इस सत्र का संचालन मेजर जनरल जी. जयशंकर, वीएसएम (से.नि.) ने किया, जिसमें चीन की ग्रे-ज़ोन रणनीति, भारत की सीमा सुरक्षा नीति, साइकोलॉजिकल व इंफॉर्मेशन वारफेयर, और राजनयिक समन्वय जैसे विषयों पर विस्तृत चर्चा हुई। पैनल वक्ताओं में लेफ्टिनेंट जनरल राज शुक्ला (से.नि.), डॉ. अमृता जश, डॉ. दत्तेश डी. परुळेकर, सुश्री अंतरा घोषाल सिंह और राजदूत अशोक के. कंठ शामिल रहे।
संगोष्ठी से पहले 24-27 जून के दौरान प्रतिभागियों ने पूह, शिपकी ला, नाको, सुम्दो, ग्यू, ताबो और काजा जैसे अग्रिम क्षेत्रों का दौरा किया। इन दौरों के माध्यम से उन्होंने सीमा क्षेत्रों की सामाजिक-सांस्कृतिक बुनावट और रणनीतिक महत्व को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया, जिससे संगोष्ठी के विमर्श को वास्तविक ज़मीनी समझ से जोड़ने में सहायता मिली।
समापन सत्र में उत्तर भारत एरिया के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल डीजी मिश्रा, एवीएसएम ने अपने संबोधन में सांस्कृतिक निरंतरता और रणनीतिक दृष्टिकोण के समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने वक्ताओं के विद्वतापूर्ण योगदान की सराहना की और इस प्रकार की पहल में सेना की निरंतर भागीदारी का आश्वासन दिया।
यह संगोष्ठी भारतीय सेना द्वारा आरंभ की गई एक व्यापक पहल का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा विमर्श में क्षेत्रीय जागरूकता, सांस्कृतिक विरासत और शैक्षणिक अंतर्दृष्टि के गहन समावेश को सुनिश्चित करना है, ताकि भारत की सीमाओं की रक्षा केवल बल से नहीं, बल्कि समझ से भी हो सके।