7 से 21 सितंबर तक रहेगा पितृ पक्ष – लोग पूर्वजों को देगें श्राद्ध
कौवें को भोजन करवाने से पितर होते हैं प्रसन्न- पंडित अनिल
शिमला़ 06 सितंबर । 07 सितंबर अर्थात रविवार से पितृ पक्ष आरंभ हो रहा है जोकि आगामी 21 सिंतबर तक चलेगा । इस दौरान लोग अपने पूर्वजों का स्मरण करके उनके निमित श्राद्ध करेगे । श्राद्धों में लोग अपने पूर्वजों की प्रसन्नता के लिए घर पर विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार करके अपने पुरोहित और बंधु बांधवों को परोसंेगे । प्रकांड विद्वान आचार्य अनिल शर्मा ने विशेष बातचीत में बताया कि श्राद्ध अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान, श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जिसका उददेश्य पितरों की आत्मा को संतुष्ट और उन्हे शांति प्रदान करना है। पितृ पक्ष के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, मुडन, अनुष्ठान करवाना वर्जित होता है । उन्होने बताया कि 07 सितंबर को खग्रास चंद्र ग्रहण लग रहा है । उन्होने लोगों से आग्रह किया है कि पूर्णिमा का श्राद्ध 12 बजे तक निपटा दे ।
पंडित अनिल शर्मा ने बताया कि हिंदू धार्मिक गं्रथों में श्राद्ध का बहुत महत्व बताया गया है । श्राद्ध की परंपरा की शुरूआत महाभारत काल से हुई है जिसमें भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के महत्व बारे ज्ञान दिया था जिसके चलते युधिष्ठिर ने महाभारत संपन होने पर युद्ध में मारे गए कौरवों की शांति व मुक्ति के लिए पिहोवा में पिंडदान ं किए गए थे । त्रेता युग में भगवान श्री राम और सीता ने बनवास के दौरान अपने पिता दशरथ का श्राद्ध फल्गु नदी केे किनारे किया गया था ।
उन्होने बताया कि गरूड़ पुराण के अनुसार कौआ को यमराज का प्रतीक माना जाता है । श्राद्धों में कौवों को भोजन कराने से यमराज संतुष्ट होते हैंे जिसे पितरो को शांति व मुक्ति मिलती है । उन्होने बताया कि पितृ पक्ष के दौरान तीर्थस्थलों पर पितरों के निमित तर्पण और पिंडदान करने का बहुत महत्व है । जो लोग तीर्थ स्थल पर नहीं जा सके उन्हें घर पर पुरोहित को बुलाकर अपने पूर्वजों प्रति पिंडदान और तर्पण अवश्य करें । तदोपरांत कौआ, कुत्ता और गाए को भोजन कराने के उपरांत बंधु बांधवों को भोजन करवाएं ।
आचार्य अनिल शर्मा ने बताया कि श्राद्ध न करने पर पितृ दोष लगता है जिससे घर में कलह, बीमारी और परेशानी जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है । उन्होने बताया कि मनुष्य को अपने जीवन में तीन ऋणों को अवश्य चुकाना चाहिए जिसमें देव ऋण, मातृ ऋण और पितृ ऋण प्रमुख है ।