Spread the love

ठंड का प्रकोप होते ही घुमंतु गुज्जरों ने किया मैदानी क्षेत्रों का रूख
स्थायी ठिकाना नहीं -फिर भी अपने व्यवसाय से खुश है गुज्जर समुदाय  
शिमला  15  अक्तूबर  । ऊंचाई वाले क्षेत्रों में  शीतलहर का प्रकोप होते ही घुमन्तुं गुज्जर समुदाय ने मैदानी क्षेत्रों का रूख कर दिया है । इस समुदाय का कोई स्थाई ठिकाना नहीं है । पहाड़ो पर बर्फ एंव अत्यधिक सर्दी आरंभ होने पर यह घुमन्तु गुज्जर अपने परिवार व मवेशियों  के साथ  मैदानी क्षेत्रों में चले जाते हैं और गर्मियों के दौरान ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पहूंच जाते है । सबसे अहम बात यह है कि इस समुदाय के लोगों को बेघर होने का कोई खास मलाल नहीं है । आधुनिकता की चकाचैंध से कोसों दूर घुमन्तंु गुज्जर वर्ष भर भैंस, भेड़ बकरियों के साथ   जंगल-जंगल घूमकर कठिन व संघर्षमय जीवन यापन करते हैं । बता दें कि गर्मियों  के दिनों घुमंतु गुज्जर समुदाय के लोग चूड़धार, नारकंडा, चांशल पास इत्यादि  जंगलों में रहते हैं । जबकि सर्दियों के दौरान नालागढ़, बददी, पांवटा, दून और सिरमौर जिला के धारटीधार क्षेत्र में चले जाते हैं ।
सूचना प्रौद्योेगिकी की क्रांति में इस समुदाय का कोई सारोकार नहीं है । सोशल मिडिया, फेसबुक, इंटरनेट , सियासत इत्यादि से इस समुदाय का दूर दूर तक कोई नाता नहीं है । यह लोग अपने सभी रीति रिवाजों व विवाह इत्यादि समाजिक बंधनों जंगलों में मनाते हैं । सर्दी, बरसात, गर्मी के दौरान गुज्जर समुदाय के लोग जंगलों में रातें बिताते हैं । बीमार होने पर अपने पारंपरिक दवाओं अर्थात जड़ी बूटियों का इस्तेमाल करते हैं ।
मवेशियों को लेकर बददी जा रहे शेखदीन व कमलदीन गुज्जर ने बताया कि आजादी के 74 वर्ष बीत जाने पर भी किसी भी सरकार ने उनके संघर्षमय जीवन बारे विचार नहीं किया और भविष्य में उमीद भी नहीं है। इनका कहना है कि दो जून की रोटी कमाना उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है । दूध, खोया, पनीर इत्यादि बेचकर यह समुदाय रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करता है । हालांकि कुछ गुज्जरों को सरकार ने पटटे पर जमीन अवश्य दी है परंतु अधिकांश गुज्जर घुमंतु ही है। शेखदीन का कहना है कि विशेषकर बारिश होने पर खुले मैदान में बच्चों के साथ रात बिताना बहुत कठिन हो जाता है । बताया कि उनके बच्चे अनपढ़ रह जाते हैं । सरकार ने घुमंतु गुज्जरों के लिए मोबाइल स्कूल अवश्य खोले हैं परंतु स्थाई ठिकाना न होने पर यह योजना भी ज्यादा लाभदायक सिद्ध नहीं हो रही है । घुमंतु गुज्जर अपने आपको मुस्लिम  समुदाय का मानते हैं परंतु इनके द्वारा कभी न ही रोजे रखे गए हैं और न ही कभी नमाज पढ़ी जाती है । कमलदीन का कहना है कि अनेकों बार जंगलों में न केवल प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है। बल्कि जंगली जानवरों से जान बचाना मुश्किल हो जाता है ं। जंगलों में बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा इत्यादि सुविधाएं न होने के बावजूद भी यह समुदाय अपने व्यवसाय से प्रसन्न है ।

By HIMSHIKHA NEWS

हिमशिखा न्यूज़  सच्च के साथ 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *