दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा श्री राम मंदिर,अन्नाडेल में आयोजित पांच दिवसीय भगवान शिव कथा के चतुर्थ दिवस में श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास साध्वी सुश्री दिवेशा भारती जी ने भगवान शिव के अदभुत श्रृंगार की विवेचना की। उन्होंने बताया कि भगवान शिव का यह अदभुत श्रृंगार रहस्यात्मक है। उनके स्वरूप का एक एक पक्ष शिक्षाप्रद है।भगवान शिव की बिखरी हुई जटाएं हमारे बिखरे मन का प्रतीक है। जिस प्रकार भगवान शिव ने जटाओं को समेट कर उनका मुकुट बनाया है उसी प्रकार आवश्यक है कि हम अपने मन को संसार के विकारों से हटाकर प्रभु में लगाएं। मनुष्य के भीतर जो विकार हैं उसका कारण भी मन है। जब तक इंसान का मन विकसित नहीं हुआ तब तक वह किसी समाधान का अंग नहीं बन सकता। यदि समाज में परिवर्तन लाना है तो सबसे पहले व्यक्ति की चेतना और अंतर मन में परिवर्तन लाना होगा। अध्यात्म द्वारा उसे जागृत करना होगा। जैसे एक डाल काट देने से वृक्ष नहीं मरता डाल पुनः उग जाती है। वृक्ष के प्राण जड़ है। जड़ को खत्म करने पर ही वृक्ष नष्ट हो सकता है। इसी तरह समाज में पनप रहे हर कुरीति, बुराई, हिंसा की जड़ मन है। इस मन रूपी जड़ को परिवर्तित करने पर ही समाज में परिवर्तन संभव है और यह परिवर्तन केवल ब्रह्म ज्ञान द्वारा ही आ सकता है। भगवान शिव के तन पर लगी भस्म मानव तन की नश्वरता को ओर संकेत है। गले में धारण किए सर्प काल का प्रतीक हैं।
साध्वी जी ने बताया कि भगवान शिव त्रिनेत्रधारी कहलाते हैं उनके स्वरूप का यह पक्ष प्राणिमात्र को एक गूढ़ आध्यात्मिक संदेश देता है। वह यह है कि हर मनुष्य त्रिनेत्रधारी है। हमारी भृकुटी के मध्य वह तीसरा नेत्र है जो बंद पड़ा है परंतु पूर्ण संत मस्तक पर अपना वरद हस्त रखते है तो वह नेत्र खुल जाता है इंसान अपने भीतर शिव के ज्योति स्वरूप का साक्षात्कार करता है।
आगे साध्वी जी ने बताया कि शिव रात्रि के पर्व पर हम देखते हैं की लोग नशे का सेवन करते हैं। लेकिन भगवान शिव तो प्रभु नाम का नशा करते थे। यह संसार का नशा सदैव जीवन का नाश करता है। यदि आज समाज में देखें तो नशे ने कितने ही घर बर्बाद कर दिए। जिस के कारण चारों ओर अनैतिकता, हत्याएं, चोरी और भ्रष्ट मानसिकताएं आदि बुराइयां फैल रही हैं। आज देश की रीढ़ कहे जाने वाले युवा वर्ग को नशे ने तबाह कर दिया। युवाओं में बढ़ रही नशे की इस प्रवृत्ति का उन्मूलन किया जाना आवश्यक है। इसके लिए युवाओं को आध्यात्मिक प्रेरणा के माध्यम से जागृत करने की जरूरत है। कथा में मधुर भजनों का गायन किया।
कथा का समापन विधिवत प्रभु की आरती के साथ हुआ जिसमें खेमराज कौशल, पण्डित सन्तोष शर्मा, सुनील मलिक आदि ने हिस्सा लिया।
