श्री सिद्ध बाबा अजीपाल जी का इतिहास बाबा जी का नाम अजीपाल (अजय पाल) है तथा इस गांव का नाम बधमाणा है इसलिए इस मन्दिर को बधमाणा सिद्ध के नाम से भी जाना आता है।
बाबा जी का इतिहास 12वी शताब्दी के समय का है। बाबा जी का जन्म अजमेर के राज परिवार में हुआ था। यह अजमेर के 1113ई. से 1130 ई. तक राजा रहे। इसके पश्चात बाबा जी ने राज-पाठ बड़े बेटे को सौंप दिया तथा स्वयं सन्यास ले लिया (धारण कर लिया) उसके पश्चात इस मन्दिर के तकरीबन 1.8 कि.मी. दूर घने जंगल के मध्य में एक गरना झाड़ी के नीचे भगवान शिव की तपस्या करनी शुरू की। उसी स्थान पर अखंड धूणा भी लगाया व एक छोटी तलायी (तालाब) का भी निर्माण किया। उस समय गांव के गवाले (चरवाहे) लोग पशु चराने इसी जंगल में जाया करते थे तभी एक दिन उन्होंने बाबा जी को गरना झाड़ी के नीचे अराधना (तपस्या) में लीन पाया। बाबा जी का शरीर हष्ट पुष्ट तथा मुंह पर दाड़ी थी।
दिव्य मुख मंडल व ज्योतिर्मय नेत्रों से युक्त थे। बाबा जी ने चरवाहों से भेंट की तथा परिचय होने के बाद बाबा जी ने उसी झाड़ी को लाठी मारी तो फुल्लियाँ-पतासे गिरे जो उनको खाने के लिए दे दिए तथा गायों को थापी मारी तो उनके थनों से दूध निकलने लगा तो चरवाहों को पीने के लिए दे दिया। यह चमत्कार देखकर चरवाहे हैरान रह गए। परन्तु बाबा जी ने उनको बोला कि घर जाकर इसके बारे में किसी को कुछ न बताएँ। तब हर रोज इसी तरह चरवाहे खुश मन से पशु चराने चले जाते थे तब उन्होंने घर से खाना ले जाना बन्द कर दिया। इस घर परिवार वालों को शंका हुई तो उन्होंने ग्वालों से पूछा कि कारण क्या है? तो कुछ समय तक तो उन्होंने कुछ नहीं बताया पर डांटने पर पूरा वृतान्त घर वालों को सूना दिया। इस पर गांव के लोग जंगल में देखने आए तो उन्हें वहां पर गरना झाड़ी पर कुछ नजर नहीं आया (बाबा जी अदृश्य हो गए थे) सिर्फ सर्प घूमता हुआ नजर आया। इस पर गांव वालों ने बोला कि ग्वाले झूठ बोल रहे हैं और वह लोग वापिस लाटगारी, अगले दिन से फिर वैसे ही ग्यालों कि दिनचर्या शुरू हो गई। बाबा जी ने उन ग्वालों को वैसे ही दर्शन दिए तथा उनसे इस बात से नाराज थे कि घर पर क्यों बता दिया। बाबा जी ने वैसे ही खाने की चीजें ग्वालों को दी। इन्ही ग्वालों में से एक श्री विजय सिंह बधमाणियां नाम का चरवाहा भी था। उनका बाबा जी से काफी प्रेम था। वह बाबा जी की सेवा में काफी लगाव रखते थे जैसे कि धूणें के लिए लकड़ियां इक्ट्ठी करना। उस दुर्गम जंगल में खड्ड से पानी लाना, झाड़ी के आस-पास की जगह को साफ रखना इत्यादि। कुछ समय बीत जाने के बाद बाबा जी ने भगवान शिव को अपने घोर तपोवल से जब सिद्ध कर लिया था तो उन्होंने विजय सिंह जी की सेवा से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा दो बार तो विजय सिंह जी ने बोल दिया कि मुझे कुछ नहीं चाहिए सिर्फ आपकी सेवा और साथ चाहिए। तीसरे वरदान पर बाबा जी ने बोला कि यह अंतिम वचन कुछ मांग लो तो विजय सिंह ने बोला मुझे आप ही चाहिए। उन्हीं को मांग लिया फिर उस घोर जंगल से निकल कर इस सुन्दर पहाड़ी के मध्य में गुफा में इस खड्ड के किनारे बाबा जी ने कुछ समय तक तपस्या की तथा अखंड धूणा यहां भी स्थापित किया। विधि के विधान के अनुसार जब उनको पता चल गया कि इस स्थान पर उनका इतना ही समय तय है तब उन्होंने विजय सिंह जी को बुलाया व कहा कि अब समय आ गया है कि विधि के अनुसार मेरा और तुम्हारा इतना ही साथ लिखा था। मैंने इस स्थान को भी भगवान शिव की कृपा से अभिमंत्रित कर दिया है। अब तुम मेरी पिण्डी के रूप में मेरी पूजा-अर्चना करना व इस अखंड धूणे को सदा जलाए रखना। इस स्थान पर जो भी भक्तजन आएगा उसके चर्म रोग (मौके, ददरी) व आंखों के भी रोग से छुटकारा मिलेगा व उसके द्वारा सच्चे मन से मांगी गई मन्नत भी पूरी होगी। इसके पश्चात बाबा जी वहां से अदृश्य हो गए। इसके पश्चात इस गुफा के पास ही उनको पिण्डी रूप में प्रतिष्ठित किया गया तब से श्री सिद्ध बाबा अजीपाल जी का मन्दिर बना। उसी समय से श्री विजय सिंह बधमाणियां जी बाबा जी की यहां विण्डी रूप में पूजा-अर्चना करने लगे तब वह महन्त विजय सिंह जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। पिछले 100 साल से उन्हीं के वंशज महन्त रघुवीर चन्द महन्त बाबू राम वर्तमान में महन्त जगदेव सिंह, पुत्र सतवीर सिंह, पुत्र कुलवीर सिंह जी सेवा कर रहे हैं।
बाबा जी के प्रत्यक्ष चमत्कार
मन्दिर परिसर में कोई भी हिंसक जानवर पशुओं पर हमला नहीं करता है।
गरना झाड़ी को आज तक भी जंगल की आग से कोई हानि नहीं हुई है।
मन्दिर के अभिमंत्रित जल व धूणे की विभूति के उपयोग से ही चर्म रोग दूर हो जाते हैं। इस मन्दिर में चोरी करने वाला व्यक्ति जल्द ही कंगाल हो जाता है। बाबा जी अपने भक्तों कि हर समय इस जंगल में हिंसक जानवारो, सांपों से रक्षा करते हैं।
लोक मान्यता के अनुसार बाबा जी के तीन रूप हैं
1.प्रातः काल साधु व तपस्वी रूप मेंदोपहर में चरवाहे के रूप में
2.दोपहर में चरवाहे के रूप में
3.सांथ काल राजा के रूप में रहते हैं
इनका योगी वेश साधना- समृद्धि का परिचायक है। बाबा जी को आटे का रोट व हल्वा प्रशाद के रूप में चढ़ाया जाता है।