पंचांग और अधिकमास ओम् विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परासुव यद् भद्रं तन्न आसुव।
हमारी भारतीय संस्कृति में पंचांग का विशेष महत्व है, जिसमें तिथि, वार, नक्षत्र,योग और करण का काल निर्धारित किया गया हो उसे पंचांग कहते हैं। पक्ष दो होते हैं,जिसे शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कहते हैं,जिसकी दोनों पक्षों की 15 ,15 तिथियां प्रतिपदा द्वितीय आदि होती है। जिस तिथि का प्रारंभ सूर्य उदय के बाद और दूसरे दिन सूर्योदय से पहले ही हो जाए उसे तिथि क्षय कहते हैं। जिस तिथि का प्रारंभ सूर्योदय से पूर्व तथा दूसरे दिन सूर्य उदय के बाद होता है,उसे वृद्धि तिथि कहते है।नक्षत्र 27 होते हैं अभिजित को मिलाकर संख्या 28 हो जाती है। अभिजित नक्षत्र उत्तराषाढ़ा की अंतिम 15 घटी तथा श्रवण नक्षत्र की प्रारंभ की चार घटी कुल 19 घटी का मान अभिजित नक्षत्र का माना गया है। योग विष्कुंभ,प्रीति आयुष्मान आदि 27 होते हैं। करण दो प्रकार के चर और स्थिर होते हैं।चर की संख्या बव,बालव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि सात होती हैं। जबकि स्थिर शकुनी, चतुष्पद्,नाग,किंस्तुघ्न है विष्टि करण में भद्रा होती है।शुक्ल पक्ष की 4,11 तथा कृष्ण पक्ष की 3, 10 तिथियां के उत्तरार्ध में भद्रा रहती है। इसी प्रकार शुक्ल पक्ष की 8, 15 तथा कृष्ण पक्ष में 7,14 तिथियां के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है।तिथि का मन निकालकर इसे दो भागों में पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में विभक्त कर भद्रा जानी जा सकती है।एक संवत्सर का मान एक वर्ष होता है। प्रभव, विभव, शुक्ल आदि 60 संवत्सर होते हैं।इसमें गुरु के भोग्य कल को संवत्सर कहते हैं।ज्योतिष काल गणना में सूर्य भगवान का विशेष महत्व है। सृष्टि में दिन-रात में जितने भी कार्य हो रहे हैं, सूर्य के कारण ही हो रहे हैं।सुर्याद् भवन्ति भूतानि सूर्येण पालि तानि तु सूर्ये लयं प्राप्नुवन्ति य: सूर्य:सो sमेव च।सन 2023 में पिंगला नमक 51वां संवत्सर चला है, जिसका शुभ धार्मिक कार्य करते हुए संकल्प में उच्चारण किया जाता है। वर्तमान सन में 57 जोड़ने से वर्तमान संवत्सर का ज्ञान हो किया जा सकता है।जैसे सन 2023 में 57 जोड़कर 2080 हुआ यही वर्तमान पिंगला नामक संवत्सर है।भारत में विक्रमादित्य संवत्सर तथा शालीवाहन शक का भी प्रचलन है। जबकि यीशु क्राइस्ट के जन्म से सन का प्रारंभ होता था,जो वर्तमान में सन 2023 वां है।मास के नाम जनवरी-फरवरी,मार्च अप्रैल में आदि है। मोहम्मद पैगंबर ईस्वी सन् 15 जुलाई 622 में मक्का मदीना गए थे, उस दिन से हिजरी सन् का प्रारंभ हुआ था। जिसमें मासों के नाम मोहर्रम,सफ़्फर रबिला वल आदि है।पारसीसन् एजदी जर्द का प्रारंभ ईस्वी सन् 630 के उपरांत हुआ था।इसमें प्रत्येक मास के 30 दिन होते हैं। मास के नाम फरपर्दिन, आदीवेस्त, खोरदाद, तीर अमरदाद आदि होते हैं।एक संवत्सर में उत्तरायण और दक्षिणायन दो अयन होते हैं।सूर्य जब मकर राशि में आकर छह राशियों का भोग करता है उसे उत्तरायण कहते हैं।इसमें दिन बड़े होते जाते हैं और रात्रि का मान घटता जाता है। जबकि सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है और 6 राशियों का भोग करता है इसमें दिन छोटे होने लगते हैं और रात्रि का मान बड़ा हो जाता है।गोल भी दो प्रकार के होते हैं, उत्तर गोल और दक्षिण गोल। सूर्य जब मेष राशि में प्रवेश करता है और 6 राशियों का भोग करने तक के काल को उत्तर गोल रहते हैं तथा जब सूर्य तुला राशि में छे राशियों के भोग कल को दक्षिण गोल रहते हैं। ऋतुएं 6 होती है,जो बसंत,ग्रीष्म,वर्षा,शरद हेमंत और शिशिर नाम से जानी जाती है।सूर्य जब दो 2 राशियों का भोग करता है उस काल को ऋतु के नाम से जाना जाता है। अर्थात् सूर्य मीन और मेष राशि में होने से बसंत ऋतु,वृष और मिथुन में होने से ग्रीष्म ऋतु,कर्क सिंह में वर्षा ऋतु,कन्या तुला में शरद ऋतु,वृश्चिक धन में हेमंत और मकर कुंभ में शिशिर ऋतु होती है।सूर्य के एक राशि भोग काल को मास कहते हैं।वैशाख, ज्येष्ठ,आषाढ़,श्रावण, भाद्रपद,आश्विन, कार्तिक,मार्गशीर्ष,पौष, माघ,फाल्गुन ये होते हैं। एक नक्षत्र काल को नक्षत्र दिन कहते है। जिसका मान 23 घंटे 56 मिनट और 4 सेकेंड के लगभग होता है,इसी को नक्षत्र अहोरात्र या नक्षत्र दिन कहते हैं।ये घटते बढ़ते रहते हैं।सूर्य के उदय से दूसरे सूर्य उदय तक के समय को सावन दिन कहते हैं।यह नक्षत्र दिन से कोई 4 मिनट बड़ा होता है।सावन दिन का मान समान नहीं होता। यह घटता बढ़ता रहता है।चंद्रमा और सूर्य की गति के कारण तिथियों का निर्माण होता है जिस समय सूर्य और चंद्रमा एक राशि पर आ जाते हैं उसे अमावस्या कहते हैं, उस समय दोनों सूर्य और चंद्रमा ग्रह 360डिग्री में होते हैं ज्यों ज्यों चंद्रमा सूर्य से आगे 12,12 डिग्री आगे बढ़ता जाएगा। प्रतिपदा,द्वितीया ,तृती या आदि तिथियां होती जाएगी। एक तिथि का मान सूर्य से आगे 12 डिग्री का होता है सूर्य के आगे शून्य से 180 डिग्री तक रहेगातो शुक्ल पक्ष और 180 डिग्री से आगे चंद्रमा 360 डिग्री तक बढ़ता रहेगा तो उस समय कृष्ण पक्ष अमावस्या होती है चंद्रमा के आने पर उस दिन 180 डिग्री तक चंद्रमा होता है तो उसमें शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा होगी उसके बाद 12,12 डिग्री आगे चंद्रमा के जाने के कारण 180 डिग्री से 360 डिग्री तक कृष्ण पक्ष और प्रतिपदा आदि तिथियां होगी। अमावस्या काल 30तिथि कहते हैं पूर्णिमा को 15 तिथि लिखा जाता है,जबकि अमावस्या को 30 तिथि लिखा जाता है।सूर्य एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति तक के काल को सौर मास के नाम से जाना जाता है। सूर्य की गति तीव्र होने पर सौर मास छोटा तथा गति मंद होने पर सौर मास बड़ा होता है।अधिक मास जानने के लिए एक सौर वर्ष में 12 सौ मास होते हैं जिसका मान 365. 25875 माध्यम सावन दिन होते हैं,परंतु चंद्रमास 354. 367 05 माध्यम सावन दिन का होता है,जिसमें चंद्रमासों में 10. 8 9 1 7 0 माध्यम सावन दिन छोटा होता है,इसलिए 33 महीने में यह अंतर एक चान्द्रमास के समान हो जाता है।जिस सौर वर्ष में यह अंतर एक चांद्रमास के समान बढ़ जाता है,उसे सौर वर्ष में 13चांद्र मास होते हैं।उस चां द्रमास को अधिक मास या मलमास के नाम से छोड़ दिया जाता है।जो चांद्रमास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होता है और दूसरे शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि तक एक भी सूर्य की संक्रांति इसमें न आए उस चांद्रमास को अधिक मास कहते हैं। यदि इस चांद्रमास में दो सक्रांतियां आ जाए,तो उसे क्षयमास के नाम से जाना जाता है।इस2080 संवत्सर पिंगला में श्रावण कृष्ण पक्ष प्रविषठे दो,दिनांक 17 जुलाई 2023 को सोमवार को अमावस्या थी।उसके उपरांत श्रा वण प्रविष्टे 32 कृष्ण पक्ष अमावस्या तक कोई भी संक्रांति सूर्य की नही आई, जिसके कारण एक अमावस्य से दूसरी अमावस्य काल को अधिक मास या मलमास के नाम से जाना गया है 17 अगस्त को पुण्य काल प्रारंभ हो जाएगा और मलमास समाप्त हो जाएगा।