26 फरवरी को प्रदेश व्यापी विरोध प्रदर्शन करेंगे किसान-मज़दूर और जनवादी संगठन
मुख्य मांग भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) से अलग होने की रहेगी
14 मार्च को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में होगी किसान-मजदूर संगठनों की महापंचायत।
26 फरवरी को संयुक्त किसान मोर्चा और मज़दूर संगठनों सीटू, हिमाचल किसान सभा, सेब उत्पादक संघ, दूध उत्पादक संघ सहित जनवादी महिला समिति, जनवादी नौजवान सभा, एआईएलयू व एसएफआई ने विश्व व्यापार संगठन से भारत को अलग करने की मांग को लेकर एक विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है।
संयुक्त किसान मोर्चा, मजदूर संगठनों और जनवादी संगठनों ने 26 फरवरी को ‘भारत डब्ल्यू.टी.ओ. छोडो’ दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। ज्ञात रहे कि 26 फरवरी 2024 को आबू धाबी में डब्ल्यू.टी.ओ. का सम्मेलन शुरू होने जा रहा है। संगठन यह विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) भारत पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य न देने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को खत्म करने की मंशा से धन के रूप में लाभ को सीधे हस्तांतरण करने की शर्त लगता है। ये दोनों ही शर्तें किसानों, गरीबों और भारत की खाद्य सुरक्षा और संप्रभुता के लिए हानिकारक हैं।
इसके अलावा केन्द्र सरकार और हरियाणा की खट्टर सरकार किसान आंदोलन को अलग-थलग करने और विभाजित करने, पंजाब के लोगों के बीच अलगाव पैदा करने और इस विभाजन का चुनावी लाभ उठाने की कोशिश की साजिश कर रही है। केंद्र और हरियाणा की सरकारों द्वारा प्रदर्शनकारियों पर गंभीर दमन किया जा रहा है।
हरियाणा पुलिस द्वारा पंजाब की खनौरी सीमा पर युवा किसान शुभकरण सिंह की हत्या पर देश भर के किसानों और मज़दूरों में गहरा रोष है। संयुक्त किसान मंच ने हत्या की साजिश रचने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को सीधे तौर पर दोषी ठहराया है।
एस.के.एम. इस मामले में अमित शाह और हरियाणा के मुख्यमंत्री और राज्य के गृहमंत्री, मनोहर लाल खट्टर और अनिल विज के इस्तीफे की मांग और उनके खिलाफ आई.पी.सी. की धारा 302 के तहत एफ.आई.आर. दर्ज करने की मांग सहित हत्या, क्रूर दमन और ट्रैक्टरों को हुए नुकसान की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश से न्यायिक जांच कराने की मांग कर रहा है।
किसान–मज़दूर संगठनों का कहना है कि मोदी शासन के दौरान कर का बोझ कॉर्पोरेट से आम लोगों पर स्थानांतरित हो गया है। अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले 10 वर्षों में, व्यक्तिगत आयकर संग्रह में 117 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि कॉर्पोरेट कर संग्रह में केवल 28 फीसदी की वृद्धि हुई। मोदी सरकार ने 2019 में कॉर्पोरेट टैक्स को 30 से घटाकर 22 कर दिया था। 2021-22 वित्तीय वर्ष में, अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज़ ने केवल 16.5 फीसदी की प्रभावी कर दर का भुगतान किया।
हालिया आंकड़े बताते हैं कि इस वित्तीय वर्ष के पहले 9 महीनों में ट्रैक्टर की बिक्री में भारी गिरावट आई है जो ग्रामीण आर्थिक स्वास्थ्य के लिए खतरे का संकेत है। इसी बीच किसानों की आय दोगुनी करने का जुमला तेजी से उजागर हो रहा है। हाल ही में आर.बी.आई. के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में सबसे कम दैनिक मज़दूरी 241 रुपये गुजरात में दी जाती है जो मुद्रास्फीति और मूल्य वृद्धि की मौजूदा दर के तहत पांच सदस्यीय परिवार के लिए जीवनयापन के लिए अपर्याप्त है। किसान, श्रमिक, छोटा व्यापारी, युवा बेरोज़गार सहित हर तबका इस शासनकाल में त्रस्त है और जनता में केन्द्र की इन जन विरोधी नीतियों के प्रति आक्रोश है।
प्रदर्शन के ज़रिए किसान–मज़दूर संगठनों ने सरकार के समक्ष मांग की है कि
- भारत WTO (विश्व व्यापार संगठन) से अलग हो
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाए
- केन्द्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दे
- किसानों का कर्ज माफ किया जाये
- केंद्र सरकार 4 लेबर कोड निरस्त करे।
प्रदेश भर में जिला मुख्यालयों सहित लगभग 20 स्थानों पर प्रदर्शन की योजना है।
एस.के.एम. संघर्ष तेज करने के लिए 14 मार्च को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल किसान-मजदूर महापंचायत भी आयोजित करेगा। इस महापंचायत में एस.के.एम. केंद्रीय श्रमिक संगठनों के संयुक्त मंच, अन्य मजदूर संगठनों, छात्रों, युवाओं, महिलाओं, सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं, छोटे व्यापारियों के संगठनों सहित सभी वर्गों के लोग भाग लेंगे।