शिमला,हिमशिखा न्यूज़ 11/02/2022
स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन ऑफ़ इण्डिया (SFI)
हिमाचल प्रदेश राज्य कमेटी कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय की लड़कियों को पढ़ाई से वंचित करने की सांप्रदायिक राजनीति की निन्दा करती है।
स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन ऑफ़ इण्डिया (SFI) कर्नाटक में भाजपा सरकार द्वारा मुस्लिम छात्राओं को सांप्रदायिक एवं महिला विरोधी नीतियों का निशाना बनाए जाने के खिलाफ़ मज़बूती से खड़ी है। हिजाब पहनने पर पाबन्दी का फ़ैसला संविधान के अनुच्छेद 25 द्वारा सभी धर्मों को मिली आचरण और व्यवहार की स्वतंत्रता के खिलाफ़ है। प्रशासन द्वारा हिजाब पहनने वाली छात्राओं को स्कूल/कॉलेज परिसर में प्रवेश देने से मना करना सरासर असवैंधानिक कदम है। यद्यपि ड्रेस कोड में कोई बदलाव किया भी जाना था तो उसे छात्र-छात्राओं के साथ विचार विमर्श कर के सर्वसहमति से लागू किया जाना था। धार्मिक आचरण और शिक्षा में से किसी एक को चुनने के लिए छात्राओं को मजबूर किया जाना पूरी तरह से निन्दनीय है।
दरअसल यह सब क्यो हो रहा है?
आप जानते है,उच्च शिक्षण संस्थानों में मौजूदा समय मे मुस्लिम महिलाओं का नामांकन दर न्यूनतम स्तर पर है। और बड़ी तादाद में छत्राओं को स्कूल/कॉलेज से बाहर करने वाले सरकार और प्रशासन की मिलीभगत से उठाए गए इस कदम से स्थिति को और बद्तर किया जा रहा है। मुस्लिम महिलाओं को दांव पर रख कर यह धर्मनिरपेक्षता पर एक खतरनाक हमला है।शिक्षण संस्थानों में मुस्लिम महिलाओं का इस तरीके का उत्पीड़न देश के भाईचारे को ध्वस्त करने वाला है।
हम कट्टरपंथी ताकतों द्वारा शिक्षण संस्थानों को सांप्रदायिक रूप से एक विशेष धर्म और विचारधारा के अड्डे में बदलने के खिलाफ़ भी अपना विरोध दर्ज करते हैं। ऐसे माहौल में महिलाओं की भागेदारी पर प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ेगा। SFI हिजाब पहन कर शिक्षण संस्थानों में प्रवेश पर राज्य सरकार की पाबन्दी को वापस लेने की मांग करती है। राज्य सरकार द्वारा हिजाब ना पहनने को थोपने के बजाय स्कूल/कॉलेजों में गर्ल्स कॉमन रूम बनाने की ओर, और लड़कियों की पढ़ाई के लिए अनुकूल वातावरण बनाने पर ध्यान देना चाहिए। हम कर्नाटक राज्य के शिक्षा मन्त्री बी सी नागेश के रवैये का भी विरोध करते हैं जो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् द्वारा विद्यालयों में भगवा शॉल ओढ़कर आने को समर्थन दे रहे हैं।
इस मामले में हम सरकार के रुख को विद्यार्थी विरोधी तथा महिला विरोधी मानते हैं। हम उन छात्राओं के हक़ में न्याय की मांग करते हैं जो अपनी शिक्षा और स्वायत्ता के लिए लड़ रही है।