गोगा नवमी पर दुल्हन की तरह सजे गोगा मंदिर सांप्रदायिक सद्भाव के अनूठे प्रतीक हैं गोगा मंदिर
शिमला़ 06 सिंतबर । गोगा जाहरवीर की वीरगाथाएं घर घर सुनाने निकली मंडलियां बुधवार को अपने स्थान लौट आई है । गिरिपार क्षेत्र में गोगा महाराज के प्राचीन मंदिर गोगा नवमी पर्व पर दुल्हन की तरह सजे हैं । इन मंदिरों में भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को पूरी रात जागगण किया जाता है तथा गोगा नवमी पर भंडारे का आयोजन किया जाता है । मंदिरों में गोगा जाहरपीर का आर्शिवाद पाने के लिए भक्तों को सैलाब उमड़ता है । सबसे अहम बात यह है कि गोगा राणा की पूजा हिंदू लोग ईष्ट के रूप में तथा मुस्लिम समुदाय के लोग पीर के रूप में मानते हैं । गोगा माढ़ी संप्रदायिक सदभाव का अनूठा संगम हैं ।
बता दें कि हर वर्ष रक्षा बन्धन से लेकर भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक मंडलियां अपने क्षेत्र में गोगा छड़ियों का भ्रमण करवाते हैं और घर घर जाकर लोगो को गोगा राणा की वीरगाथा सुनाते है। लोग इसके एवज में रोट तथा हलवे का प्रसाद चढाते है। लोगों का विश्वास है कि गुग्गा को रोट अर्पित करने से सर्पदशं व विषैले कीडों का भय नहीं रहता है तथा नकारात्मक शक्तियां घर में प्रवेश नहीं कर सकती है । बताते हैं कि गोगा को नागों के देवता भी माना जाता है । अनेक गोगा माढ़ी पर सर्पदंश का आज भी उपचार भी किया जाता है ।
गोगा राणा के प्रादुर्भाव का इतिहास राजस्थान के चुरू जिला के ददरैवा स्थान से जुडा है। गोगा चैहान वंशज राजा जेवर और माता बाछल के यशस्वती पुत्र थे । इनकी माता बाछल की गुरू गोरखनाथ जी के चैदह वर्ष तपस्या करने के फलस्वरूप प्रसाद में प्राप्त गुग्गल वटी के सेवन से इनकी उत्पत्ति बताई जाती है। माता बाछल के अतिरिक्त गुग्गल वटी का प्रयोग राजा जेवर के महल में रहने वाली नारसिंही ब्राह्मणी तथा उनकी घोडी ने किया था जिससे नारसिंह एवं नीला घोडा का जन्म हुआ था । गुग्गा इस घोड़े की सवारी करते थे । कालान्तर में इनका विवाह कोरू देश के राजा सान्गा की पुत्री सिरियल से हुआ था ।
जनश्रुति के अनुसार तत्कालीन मुगल शासक ने एक बार बागड देश पर चढाई कर दी थी । इस युद्ध में गोगा के मौसेरे भाई अर्जुन तथा सुरजन ने मुगल शासक का साथ दिया था । गुग्गा जाहरपीर ने अपने युद्ध कौशल से सभी शत्रुओं को परास्त करके युद्ध पर विजय पाई थी । इस युद्ध में इनके दौनो मौसेरे भाई वीरगति को प्राप्त हुए थे । यह वृतांत सुनने पर गोगा राणा की माता ने कुपित होकर इन्हें देश निकाला दे दिया था जिस पर इन्होने राजस्थान के हनुमान गढ जिला के गोग्गा मैढी नामक स्थान पर जीवित समाधि ले ली और तभी से लेकर उत्तरी भारत में इनकी वीर योद्धा के रूप मे पूजा अर्चना की जाती है। गोगा राणा का इतिहास सिरमौर जिला के पीठासीन देवता शिरगुल को दिल्ली के मुगल जेल से मुक्त कराने से भी जुडा है।
