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परिवार के 16 सदस्य लापता
बक्शी केदारटा ने जानकारी देते हुए बताया कि इस हादसे में उनके परिवार से करीब 16 लोग लापता हुए है। घटना से तीन दिन पहले ही उन्होंने अपनी बेटी से बात की थी।उनकी बेटी का 4 साल का बेटा और 8 साल की बेटी भी लापता है। उनके बारे में कोई सुराग नहीं मिल पाया है। उन्होंने कहा कि अपने जीवन में उन्होंने ऐसा कोई मंजर नहीं देखा है।

अनीता ने परिवार सहित मंदिर में गुजारी रात
समेज गांव से संबंध रखने वाली अनीता ने बताया कि घटना की रात वह गहरी नींद में सोई हुई थी। अचानक रात को साढ़े बारह बजे के करीब घर हिला और बाहर काफी शोर, आवाज़ें आ रही थीं। तब वह भी अपने बच्चों के साथ घर से बाहर आ गई और यहां से भाग कर ऊपर मंदिर में चले गए। हमने पूरी रात मंदिर में ही गुजारी। जब सुबह यहां आए तो कुछ नहीं बचा था। अब जीने का क्या फायदा जब अपना कोई रहा ही नहीं।

स्कूल देखने पहुंचे बच्चें
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला समेज़ में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्र कार्तिक ने बताया जिस दिन यह घटना हुई वह अपने परिवार वालों के साथ ही था। आसपास के सारे लोग एक जगह ही इक्कठे हो गए थे। हमने पूरी रात जाग कर ही बिताई। जब सुबह 6 बजे के करीब उजाला होने लगा तो हम स्कूल की तरफ आए तो निचली मंजिल पूरी पानी से भर गई थी। स्कूल के बाहर एक छोटा सा मंदिर है जोकि सुरक्षित है। मेरे बहुत से दोस्त जो स्कूल में पढ़ते थे वो लापता है।
आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले कार्तिक ठाकुर ने कहा कि मेरे दोस्त अरुण, आरुषि, रितिका और राधिका थे। वो नहीं मिल रहे है।

राधिका दीदी को ढूंढते रहे बच्चे
स्कूली बच्चे कार्तिक, राखी, अर्णव और अश्वनी अपनी बड़ी दीदी राधिका को ढूंढते रहे। राधिका दीदी स्कूल के अधिकांश बच्चों की पसंदीदा थी। राधिका बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। स्कूली बच्चों को जो होम वर्क मिलता था तो वह उसे बच्चों को पढ़ाती थी और याद करवाती थी। स्कूल के बच्चों ने कई जगह ढूंढा लेकिन राधिका का कोई भी सुराग नहीं लगा। बच्चों ने कहा कि राधिका दीदी की याद आ रही है। हमें अब कौन पढ़ाएगा।

प्रशासन कर रहा भोजन व्यवस्था
जिला प्रशासन ने घटना स्थल से कुछ मीटर की दूरी सरघा गांव में भोजन व्यवस्था केंद्र स्थापित किया है। यहां पर लोगों को भी मुफ्त में भोजन मुहैया करवाया जा रहा है। इसके साथ ही रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हर सदस्य को यही भोजन करवाया जा रहा है।

पोकलोन की सहायता
रेस्क्यू ऑपरेशन के दूसरे दिन बड़ी पोकलेन की सहायता ली गई। भारी पत्थर और मलबा होने के कारण पोकलेन की सहायता ली जा रही है। कई जगह तो पत्थर इतने भारी है कि पोकलेन की मदद से भी हटाया जाना मुश्किल है।

रिश्तेदारों के पास ही ठहर रहे अधिकतर प्रभावित
हादसे के अधिकतर प्रभावित अपने रिश्तेदारों के पास ही पिछले दो दिनों से रुक रहे है। हालांकि जिला प्रशासन ने बुशहर सदन में ठहरने की व्यवस्था की हुई है लेकिन लोग अपनों के पास रुकने को ही प्राथमिकता दे रहें है।

आर्मी ने लगाया मेडिकल कैंप
घटनास्थल पर आर्मी ने मेडिकल कैंप स्थापित किया है। जहां पर प्रभावितों सहित अन्य लोगों का मुफ्त इलाज किया जा रहा है। इसके अलावा मरीजों को मुफ्त दवाइयां भी वितरित की जा रही है ।

साठ फीट से अधिक मलबा
बादल फटने के कारण आई बाढ़ से खड्ड में 60 फीट से अधिक का मलबा बहा है। धीरे-धीरे पानी नीचे उतर कर पुराने स्वरूप में पहुंच गया है। लेकिन खड्ड के दोनों तरफ मलबे के निशान साफ दिख रहें है।

By HIMSHIKHA NEWS

हिमशिखा न्यूज़  सच्च के साथ 

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