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आपदा प्रबंधन के लिए भारत का लगभग 82% भौगोलिक क्षेत्र विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं के लिए बना चुनौतीपूर्ण एवं संवेदनशील

जैसा कि हम सब जानते हैं कि क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व का सबसे बड़ा देश रूस है, और क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश है जिसका क्षेत्रफल 32 लाख 87 हजार 263 वर्ग किलोमीटर है। परंतु हाल ही के आंकड़ों के अनुमान से जनसंख्या की दृष्टि की बात करें तो भारत ने चीन देश को पछाड़ते हुए विश्व का सबसे बड़ा आबादी वाला देश बन चुका है जिसकी कुल आबादी 140 करोड़ तक पहुंच गई है। और अब यह आपदा की दृष्टि से देखें तो एक चिंता का विषय है, क्योंकि जितनी अधिक आबादी होगी उतना ही अधिक यह आपदा प्रबंधन के लिए चुनौतीपूर्ण पूर्ण होगा। अगर आपदाओं के हिसाब से देखें तो भारत देश का लगभग 82% क्षेत्र विभिन्न प्रकार की तीव्र आपदाओं के लिए अति संवेदनशील श्रेणी के अंतर्गत आता है, जिस कारण अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि के चलते जान एवं माल के नुकसान होने की संभावना भी अधिक बढ़ जाती है। केंद्र सरकार व राज्य सरकारों के पास इसके प्रबंधन एवं नियोजन के लिए व सुरक्षा की दृष्टि से उतने अधिक संसाधन उपलब्ध नहीं है, जो कि इतनी अधिक जनसंख्या की सुरक्षा एवं संवेदनशीलता के सटीक प्रबंधन की गारंटी प्रदान करती हो।
भारत एक विकासशील देश है एवं उनकी आर्थिक स्थिति उन्नति के पथ पर अग्रसर है, परंतु अगर हम पिछले कुछ दशकों के आंकड़ों की बात करें तो आपदाओं की प्रवृत्ति व आवृत्ति में अधिक वृद्धि हुई है, जिसमें की मानव निर्मित एवं प्राकृतिक आपदाएं दोनों ही शामिल हैं। इसमें हम देखें तो भारत में सन 1951 से 2020 तक के दशकों में विभिन्न प्रकार की आपदाओं में वृद्धि दर्ज की गई है, जिस में की सन 1951 से 1960 के दशक में इनकी संख्या 27 थी, सन 2001 से 2010 के बीच इनकी संख्या 162 थी और अगर हम 2010 से 2020 के दशक की बात करें तो इन आपदाओं की संख्या में 245 तक वृद्धि दर्ज की गई है जो कि अपने आप में ही अधिक व गंभीर वृद्धि चक्र को दर्शाती है। वहीं दूसरी ओर हम भारत में इन आपदाओं के प्रवृत्ति व आवृत्ति विशेष पर नजर डालें तो सन 1900 से 2011 तक विभिन्न प्रकार की आपदाओं में वृद्धि हुई है इसका प्रतिशत इस प्रकार से है: बाढ़ 40%, भूस्खलन 6%, हिमस्खलन 1%, तीव्र तूफान 26%, सुखा 2%, भूकंप 5%, महामारी 12%, और तीव्र तापमान 8% की वृद्धि दर्ज की गई है।
अगर हम इन सभी प्राकृतिक आपदाओं में से भूकंप के बारे में विस्तृत रूप से जाने तो भूकंप वह घटना है जब पृथ्वी प्राकृतिक रूप से एकाएक कंपन करने लगे एवं इसके कंपन से जान एवं माल को अधिक नुकसान हो उसे ही हम “भूकंप” कहते हैं।
भूकंप आने के कई कारण हैं: जिनमें से की एक प्रसिद्ध कारण धरती के नीचे विभिन्न प्रकार की भू-प्लेटों का आपस में घर्षण, एवं विस्थापन व एडजस्टमेंट के कारण होने वाले गतिरोध से ही भूकंप आने की घटनाएं होती हैं, विश्व में प्रशांत महासागर के तटीय क्षेत्र को “रिंग ऑफ फायर” के नाम से जाना जाता है जिसमें की सर्वाधिक भूकंप एवं ज्वालामुखी  की घटनाएं प्रतिवर्ष देखने को मिलती हैं, यह सब प्लेट-विवर्तनिकी सिद्धांत का ही एक रूप है। भूकंप को उनकी तीव्रता एवं संभावनाओं के अनुसार निम्नलिखित भूकंप क्षेत्रों में बांटा गया है: भूकंप क्षेत्र- 2, 3, 4 और 5, इन सभी भूकंप क्षेत्रों में 4 और 5 जोन को भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है, जहां पर रिक्टर स्केल पर तीव्रता 9 तक भूकंप आने की संभावना होती है जो की भारी जान एवं माल के नुकसान को करने की क्षमता रखती है, यदि हम भारत के संदर्भ में बात करें तो भूकंप क्षेत्र- 5 में मुख्यतः जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, सिक्किम, संपूर्ण उत्तर-पूर्वी राज्य व
 गुजरात राज्य के कुछ क्षेत्र श्रेणीबद्ध किए गए हैं।
इन अति संवेदनशील क्षेत्रों में हिमाचल प्रदेश के कुछ जिलों के भाग भी शामिल हैं, तो हम यदि उनके बारे में अध्ययन करें तो हिमाचल प्रदेश में सन 1800 से 2008 तक लगभग अनुमानित 553 भूकंप सूचीबद्ध किए गए हैं। इनमें सबसे अधिक विनाशकारी भूकंप सन 4 अप्रैल 1905 को कांगड़ा-भूकंप के नाम से जाना जाता है, इस विनाशकारी भूकंप द्वारा उस समय बहुत अधिक जान एवं माल का नुकसान रिकॉर्ड किया गया था। इस भूकंप की रिक्टर पैमाने पर तीव्रता 8.9 मेग्नीट्यूड दर्ज की गई थी और इस भूकंप से हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में ही लगभग 20,000 लोगों की मृत्यु, 53,000 घरेलू जानवरों की मृत्यु, 1,00,000 घरों को पूर्णतया नुकसान तथा लगभग 2.9 मिलियन आधिकारिक रूप से आर्थिक नुकसान का आंकलन किया गया था।
भूकंप क्षेत्र 5 कि यदि हम बात करें तो हिमाचल प्रदेश के कुछ जिले तथा क्षेत्रफल जो की अति संवेदनशील श्रेणी में आते हैं उनका प्रतिशत इस प्रकार से है: (जोन-5 व क्षेत्र)- जिला कांगड़ा 98.80 %, मंडी 97.40 %, हमीरपुर 90.90%, चंबा 53.20%, कुल्लू 53.10%, ऊना 53.10%, बिलासपुर 25.30% भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील क्षेत्र में आते हैं, तथा किसी भी समय इन चिन्हित क्षेत्रों में 8 से 9 तीव्रता तक के भयंकर भूकंप के आने की प्रबल संभावनाएं वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर दी जाती रही हैं। यदि हम हिमाचल प्रदेश राज्य की बात करें तो यहां पर सभी प्रकार की आपदाओं की दृष्टिगत कुछ जिले चिन्हित किए गए हैं जिन्हें की सर्वाधिक संवेदनशील श्रेणी (High Vulnerability Zone) में रखा गया है इनमें जिला चंबा, कांगड़ा के कुछ भाग, कुल्लू, शिमला के कुछ भाग, व किन्नौर जिला शामिल हैं। भारत के इतिहास में कुछ अधिक विनाशकारी भूकंप रिकॉर्ड हैं जिनकी अगर हम बात करें तो सन 1940 से 2005 तक लगभग तीन सबसे अधिक विनाशकारी भूकंप सूचीबद्ध किए गए हैं- जिसमें की गुजरात के भुज में सन 2000 में 7.5 तीव्रता का भयंकर भूकंप जिसने की लगभग 20,000 व्यक्तियों की जान ली, असम राज्य में सन 1950 में 8.6 तीव्रता का भयंकर विनाशकारी भूकंप आया जिसमें की लगभग 1500 लोगों की मृत्यु हुई, महाराष्ट्र राज्य में सन 1993 में 6.4 तीव्रता का भयंकर भूकंप आया जिसने की लगभग 20 हजार लोगों को मौत की नींद सुला दिया था आदि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त यदि हम आंकड़ों की बात करें तो हिमाचल प्रदेश में 1 जून 1945 से 29 जुलाई 1997 तक भी विभिन्न प्रकार के भूकंप सूचीबद्ध किए गए हैं जो कि 5 से लेकर 7 तीव्रता तक मापे गए थे  भी शामिल हैं। हिमाचल प्रदेश एक पहाड़ी राज्य है जो कि भारत के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में स्थित है जहां पर 4 अप्रैल 1905 के भयंकर एवं विनाशकारी भूकंप को बीते हुए लगभग 125 वर्षों से अधिक समय हो चुका है किसी बड़े विनाशकारी भूकंप को संबंधित एजेंसियों द्वारा अब तक रिकॉर्ड नहीं किया गया है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि भविष्य में हिमाचल प्रदेश में बड़े भूकंप आने की कोई संभावना नहीं है यह किसी भी समय आ सकता है परंतु हमें पूर्ण रूप से भूकंप के प्रति जानकारी एवं जागरूकता होनी चाहिए,  विशेष कर हमारे अति संवेदनशील क्षेत्रों जैसे की:  विद्यालयों, अस्पतालों, सरकारी भवनों एवं अन्य निवास स्थलों व सामूहिक निवास स्थलों जहां पर अधिक संवेदनशील व्यक्तियों का समूह, भीड़ भाड़ रहती हो। भूकंप से बचने के लिए हमें भूकंप से पहले, दौरान एवं बाद में की जाने वाली कार्य विधि को पूर्ण रूप से समझना होगा तथा सरकार द्वारा भी समय-समय पर इससे संबंधित स्कीमों, परामर्शों व गाइडलाइंस जैसे की भवन बनाने से पूर्व हमें राष्ट्रीय भवन नीति-2016 को समझना है इसके अतिरिक्त भवन निर्माण में हमें भूकंपरोधी भवनों के निर्माण को अधिक तवज्जो देनी होगी व इसके साथ ही भूकंप से संबंधित मॉक अभ्यास को हमें अपने स्कूलों, सरकारी भवनों एवं अन्य संस्थाओं में प्रतिवर्ष नियमित रूप से आयोजित करनी चाहिए।
इसके साथ ही अपनी आपदा प्रबंधन योजना को भी तैयार रखनी चाहिए व उसी के आधार पर आगामी योजनाएं एवं कार्य विधियां तैयार करनी चाहिए। इस प्रकार की गतिविधियों से हम भूकंप से होने वाले अधिक जान एवं माल के नुकसान को कम कर सकते हैं, क्योंकि भारत में जनसंख्या की वृद्धि तीव्र रूप से विकराल रूप ले रही है व इसमें युवा वर्ग की संख्या अत्यधिक है तो हमें युवाओं के माध्यम से ही समुदाय को जागरूक एवं शिक्षित करना होगा तभी हम इस प्रकार की आपदाओं से भविष्य में पूर्ण रूप से बचाव कर पाएंगे तथा स्वयं एवं अपने परिवार व हमारे आसपास के समुदाय की रक्षा कर पाएंगे क्योंकि यह प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है जिसे उसे पूर्ण रूप  एवं ईमानदारी व निष्ठा से निभाना होगा तभी हम इन प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं के ऊपर विजय प्राप्त कर सकेंगे और भारत को एक सशक्त, आर्थिक, सामाजिक एवं विकसित राष्ट्र बनने में अपना यथासंभव सहयोग दे पाने में सक्षम बन पाएंगे।

By HIMSHIKHA NEWS

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