परिवर्तन ही आत्म चिंतन का अंतिम परिणाम है:- स्वामी विज्ञानानंद जी।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा अपने कारागार सुधार परियोजना एवं पुनर्वास कार्यक्रम अंतरक्रांति प्रकल्प के अंतर्गत स्थानीय जिला कारागार कैथू में तीन दिवसीय आध्यात्मिक चिंतन एवं ध्यान आयोजन कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसके आज प्रथम दिवस संस्थान की ओर से दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी विज्ञानानंद जी ने प्रवचनों में कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में सुख चाहता है लेकिन उसके कर्म संस्कारों के फल स्वरुप ही उसके जीवन में दुख बिना बुलाए ही आ जाते हैं जिससे वह हताश एवं निराश हो जाता है। सुख शब्द का अर्थ है ‘सुंदर आकाश’ पंच भौतिक शरीर में सिर को आकाश तत्व में गिना जाता है। हमारे मस्तिष्क में चलने वाले विचार एवं चिंतन ही हमारे सुख व दुख का कारण बनते हैं। जब मस्तिष्क में चलने वाले विचार सुंदर एवं परोपकार की भावना से भरे हों तभी हम अनंत सुख की अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं। मस्तिष्क के आकाश में दुष्ट चिंतन का होना ही दुख का कारण है। आगे स्वामी जी ने कैदी बंधुओं को जागरुक करते हुए कहा कि एक साधारण व्यक्ति के लिए सुख की प्राप्ति करना मृगतृष्णा के समान है क्योंकि वह आजीवन सुख के पीछे भागता है लेकिन उसके हाथ केवल दुख ही आता है क्योंकि जिसे आज हम सुख मान कर भोग रहे हैं वह सुख के पीछे छिपा हुआ दुख ही होता है। हम भौतिक संसाधनो की पूर्ति को ही सुख मान कर बैठ जाते हैं और अपने भीतर चल रहे चिंतन पर कभी कार्य ही नहीं करते। जैसे फूलों के बगीचे को हरा भरा रखने के लिए माली की आवश्यकता होती है इसी प्रकार जीवन की बगिया को सुख रुपी सुवास से तभी भरपूर रखा जा सकता है जब हमारे चिंतन में दिव्यता भरने वाले स्वयं परमात्म स्वरुप ब्रह्मिष्ठ संत हों। गुरु ब्रह्मज्ञान की ध्यान साधना, सत्संग, सेवा,सुमिरन के द्वारा हमारे चिंतन पर ही कार्य करते हैं। जब हमारे मस्तिष्क में निरंतर परमात्मा के नाम का सुमिरन एवं गुरु की याद का चिंतन चलता है तब एक साधक की अवस्था पूर्णतः सुख स्वरूप होती है।
कार्यक्रम का शुभारंभ कारागार उप अधीक्षक प्रकाश चंद वर्मा जी व स्वामी विज्ञानानंद जी द्वारा ज्योति प्रज्वलित कर किया गया। जाकर में जय गोपाल जी की भी सहर्ष उपस्थिति रही।
कार्यक्रम में महात्मा बलदेव व राजकुमार ने सुमधुर भजनों का गायन करके समस्त कैदी बंधुओं को मंत्र मुग्ध कर दिया।