शिमला,हिमशिखा न्यूज़
हिमाचल में वीरभद्र सिंह 1962 में सक्रिय राजनीति में आए। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने फोन पर इन्हें सांसद का चुनाव लडऩे के लिए कहा। उसके बाद से लगातार ही हिमाचल की राजनीति में का दूसरा नाम वीरभद्र सिंह बन गया। केंद्रीय राज्य मंत्री ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार में अहम मंत्री युवावस्था में ही रह चुके थे। आधी सदी से ज्यादा हिमाचल की राजनीति में सक्रिय रहे। इस दौरान केंद्रीय मंत्री, सांसद, छह बारमुख्यमंत्री से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष जैसे पदों पर रहे। पहली बार 1983 में वीरभद्र सिंह जब
मुख्यमंत्री बनकर हिमाचल आए तो उस समय से लेकर 2012 कर सीएम कौन बनेगा, इसको लेकर काफीचर्चा तो रही, लेकिन हर बार वीरभद्र सिंह ही सभी पर भारी पड़े।पहले रामलाल ठाकुर, नालागढ़ के राजा वीरेद्र सिंह, फिर पंडित सुखराम, विद्या स्टोक्स, जेबीएल खाची से लेकर कौल सिंह ठाकुर सहित अन्य नेता समकक्ष खड़े होने की कोशिश की, लेकिन वीरभद्र सिंह सभी पर इक्कीस साबित हुए। हर बार वीरभद्र सिंह अपने राजनीतिक विरोधियों पर भारी पड़े। वीरभद्र सिंह अपने राजनीतिक विरोधियों को भी दिल व दिमाग के बीच में संतुलन बिठाकर हर समस्या का रास्ता निकालते थे। अपनी पार्टी ही नहीं बल्कि पार्टी के विरोधी नेताओं से भी सीधे टक्कर लेने में ही विश्वास करते थे।
शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल से भी सीधे ही खुद सामने आकर टक्कर लेते थे। कई मामलों में तो राजनीतिक जंग न्यायालयों तक पहुंची। वीरभद्र सिंह भी खुद सामने आकर हर आरोप का जवाब देते रहे। राजनीतिक विरोधियों के सहयोग के साथ उनसे राजनीतिक बदलों के लिए भी जाने जाते थे। हिमाचल में जब भी सत्ता बदली तो हर बार मामले खुलते रहे। भले ही वे कभी अंजाम तक नहीं पहुंचे, लेकिन वीरभद्र सिंह राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर रहे और खुद भी उन्हेंं निशानों पर लेते रहे। आज राजनीति के युग का अंत हो गया।