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73वें वर्चुअल वार्षिक निरंकारी संत समागम का सफलतापूर्वक समापन
जीवन में स्थिरता, सहजता और सरलताला लाने के लिए परमात्मा के साथ नाता जोड़ें
-सद्गुरु माता सुदीक्षा जी

महाराज
 ‘‘जीवन में स्थिरता, सहजता और सरलता लाने के लिए परमात्मा के साथ नाता जोड़े।’’ यह
विचार सद्गुरु माता सुदीक्षाजी महाराज ने मानवता को प्रेरित करते हुए तीन दिवसीय 73वें वर्चुअल वार्षिक निरंकारी संत
समागम के समापन दिवस पर 7 दिसम्बर, 2020 को अपने प्रवचनों में व्यक्त किए। इस समागम का संत निरंकारी मिशन की
वेबसाईट एवं संस्कार टी.वी. चैनल पर, विश्व में फैले लाखों श्रद्धालु भक्तों द्वारा आनंद प्राप्त किया गया।
सद्गुरु माता सुदीक्षा जी ने कहा कि जीवन के हर पहलू में स्थिरता की आवश्यकता है। परमात्मा स्थिर, शाश्वत एवं
एक रस है। जब हम अपना मन इसके साथ जोड़ देते हैं तो मन में भी ठहराव आ जाता है। जिससे हमारी विवेकपूर्ण निर्णय
लेने की क्षमता बढ़ जाती है और जीवन के हर उतार-चढ़ाव का सामना हम उचित तरीके से कर पाते हैं।
इस बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए सद्गुरु माता जी ने कहा कि जैसे एक वृक्ष में फल लगने से पहले फूल आते हैं
और फल उतारने का समय भी आ जाता है। उसके पश्चात् पतझड़ का मौसम आता है जिसमें पत्ते तक निकल जाते हैं और एक
हरा-भरा वृक्ष, जिसकी शाखाएँ हरी-भरी लहलहाती थी, अब वह सूखी लकड़ियों की भाँति प्रतीत होता हैं। अस्थिरता और
मौसम में परिवर्तन के बावजूद वह वृक्ष अपने स्थान पर खड़ा रहता है क्योंकि वह अपनी जड़ों के साथ मज़बूती से जुड़ा हुआ
है। इसी प्रकार हमारी जडं, हमारा आधार, हमारी नींव इस परमात्मा के साथ जुड़ी रहें और हम इसके साथ इकमिक हो जाएं
तब किसी भी परिस्थिति के आने से हम विचलित नहीं होते।
इसके पूर्व समागम के पहले दिन सद्गुरु माताजी ने ‘मानवता के नाम संदेश’ प्रेषित कर समागम का विधिवत्
उद्घाटन किया। जिसमें मानव को भौतिकता से ऊपर उठकर मानवीय मूल्यों को अपनाने का आवाह्न किया।
पहले दिन के मुख्य प्रवचन में सद्गुरु माताजी ने कहा कि संसार में कोई भी वस्तु स्थिर नहीं है। हर चीज़ में निरंतर
परिवर्तन होता रहता है। कोरोना काल ने इस बात का अत्याधिक अहसास कराया कि हर वस्तु चाहे कितनी भी बहुमूल्य हो
उसका स्वरूप स्थायी नहीं रहता। ऐसी अस्थिर वस्तुओं के साथ जब मन का जुड़ाव हो जाता है तब मन आसक्त हो जाता है
जिसका प्रभाव भावनात्मक, मानसिक एवं शारीरिक रूप में होने लगता है। ऐसी स्थिति में हमारे मनको जो ठीक रख सकतीहै वह है ‘स्थिरता’। फिर जब हम स्थिर हो जाते हैं तब शाश्वत् आनंद के साथ प्रबलता से मानवीयता की ओर बढ़ सकते हैं।
‘स्थिरता’ का भाव समझाते हुए सद्गुरु माताजी ने कहा कि संसार परिवर्तनशील है। इसमें तो उथल-पुथल होती हीरहती है। परिस्थितियाँ कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल होती हैं। कई बार हमारी अपनी सोच हमें कहीं एक दिशा में ले जातीहै तो कहीं दूसरी ओर। इससे कभी हम बहुत खुश तो कभी इतने निराश हो जाते हैं कि एकदम तनाव ग्रस्त हो जाते हैं। जीवनके उतार चढ़ाव में संतुलन बनाकर चलने से हमें स्थिरता प्राप्त हो सकती है और यह केवल तभी संभव है यदि हमआध्यात्मिक जागृति प्राप्त कर चुके संतो का संग करते हैं।सेवादल रैली समागम के दूसरे दिन का आरंभ एक रंगारंग सेवादल रैली से हुआ जिसमें देश-विदेश के सेवादल भाई-बहनों द्वाराप्रार्थना, शारीरिक व्यायाम, खेल-कूद तथा विभिन्न भाषाओं के माध्यम द्वारा मिशन की मूल शिक्षाओं को दर्शाया गया।सेवा में समर्पित रहने वाले सभी संताे को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा किकोरोना के कारण जीवन में कितनी सारी परेशानियाँ एवं समस्याओं के आने के बावजूद जिनका भी मन स्थिर था एवंजिन्होंने सेवाभाव से अपने मन को जोड़ें रखा उनके जीवन में सहजता और स्थिरता कायम रही। इस वर्ष की विपरीतपरिस्थितियों में बहुत से लोगों की जीवनशैली भी बदल गई। लेकिन सेवादारों के द्वारा इस परिस्थिति में भी सेवा का वही
ज़ज्बा कायम रहा।इसी सेवाभाव को आगे बढ़ाते हुए कोविड-19 के दौरान सरकार द्वारा दिए गये दिशा-निर्देशों को अपनाते हुएमानवता के कल्याण के लिए सेवा में मिशन ने अपना भरपूर योगदान दिया। जहाँ भी ज़रूरत महसूस हुई चाहे वह मोहल्ला,बस्तियाँ, गाँव, शहर हो वहाँ जाकर राशन एवं जरूरत मंद वस्तुओं का वितरण किया गया। मिशन के कई भवन कोरोनासेंटर के रूप में भी उपयोग किये गए। जब लाकडाउन में कुछ शिथिलता आई तो कोरोना के कारण हुई रक्त की कमी को पूराकरने के लिए मिशन की ओर से समय समय पर रक्तदान शिविर लगाये गये।सद्गुरु माताजी ने कहा कि हमने सेवा केवल स्वयं के परिवार की नहीं अपितु पूरे संसार के लिए करनी है। सेवादार-‘मानवता है धर्म हमारा, हम केवल इन्सान है’ के भाव को अपनाते हंै और वह सेवा को अपना सौभाग्य मानते हुए उसेविनम्रतापूर्वक करते हैं और उसे किसी पर एहसान नही समझते।दूसरे दिन के सत्संग समारोह को सम्बोधित करते हुए सद्गुरु माताजी ने कहा कि जब हमारा मन परमात्मा कीपहचान कर इसका आधार लेता है, तब हम परमात्मा के ही अंश बन जाते है और जीवन में स्थिरता आ जाती है। यदि हमयह सोचें कि बाहर का वातावरण हमारे अनुकूल हो जाने से जीवन में स्थिरता आयेगीय तो यह सम्भव नहीं। स्थिरता तोअंतर्मन की अवस्था पर निर्भर है। अंतर्मन को परमात्मा से जोड़कर स्थिरता प्राप्त की जा सकती है। फिर किसी भी प्रकार कीपरिस्थिति हमारे मन का संतुलन नहीं बिगाड़ सकती क्योंकि हम अंदर से मजबूत हैं, हमारी जड़ें मजबूत हैं। ऐसे में बाहरीवातावरण हमारे मन को विचलित नहीं कर सकता।सद्गुरु माताजी ने उदाहरण देते हुए कहा कि एक सागर का स्वरूप इतना गहरा, बड़ा और विशाल होता हैय उसकेबावजूद भी उसकी गहराई में कोई हलचल महसूस नहीं होती। लेकिन जब हम उसके किनारे की ओर आते हैं तो उसकीगहराई कम हो रही होती हैं। उसमें लहरें भी आती हैं, उछाल भी आते हैं और शोर भी सुनाई देने लगता है। इसी भाँति मानवजो सहनशील होता है विषम परिस्थिति में प्रभु, निरंकार के साथ जुड़कर उसकी स्थिरता कायम रहती है। इसके विपरीत जोइन्सान छोटी-छोटी बातों का असर ग्रहण करता है उसके व्यवहार से ही पता चल जाता है कि वह स्थिर नहीं है।

कवि दरबार समागम के समापन दिवस पर 7 दिसम्बर की संध्या को एक बहुभाषी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।जिसमें विश्वभर के 21 कवियों ने ‘स्थिर से नाता जोड़ के मन का, जीवन को हम सहज बनाएं।’ इस शीर्षक पर विभिन्नबहुभाषी कविताओं का सभी ने आंनद लिया। जिसमें हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, मराठी, उर्दू एवं मुल्तानी इत्यादि भाषाओं का
समावेश देखने को मिला। अपनी रचनाओं के माध्यम सेमानव जीवन में स्थिरता के महत्त्व को समझाते हुए उसके हर एक
पहलू को उजागर करने का कवियों द्वारा प्रयास किया गया।
समागम के तीनों दिन भारत वर्ष के अतिरिक्त दूरदेशों से ब्रह्मज्ञानी वक्ताओं ने विभिन्न भाषाओं का सहारा लेते हुए
जहाँ अपने प्रेरणादायी विचार प्रस्तुत किये, वहीं सम्पूर्ण अवतार बाणी तथा सम्पूर्ण हरदेव बाणी के पावन शब्द, पुरातन
संतों के भजन तथा मिशन के गीतकारों की प्रेरणादायी मधुर रचनाओं ने भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

By HIMSHIKHA NEWS

हिमशिखा न्यूज़  सच्च के साथ 

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