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चिंतपुरनी,हिमशिखा न्यूज़ 22/03/2023

लोगों की चिंताओं को दूर करके मनोकामनाओं को पूर्ण करती है ‘माता श्री चिंतपूर्णी’

श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है प्रसिद्ध शक्तिपीठ छिन्नमस्तिकाधाम
हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। प्रदेश के हर कोने-कोने में देवी-देवताओं का वास है जोकि लोगों की आस्था का केन्द्र बने हुए हैं। देश के कोने-कोने से लोग इन धार्मिक स्थलों में आकर अपनी श्रद्धा और आस्था प्रकट करते हैं। ज़िला ऊना का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माताश्री चिंतपूर्णी का नाम भी पूरे देश में सुविख्यात है। माताश्री चिंतपूर्णी अर्थात् चिंताओं को दूर करने वाली देवी जिसे छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है। देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है-विश्वविख्यात छिन्नमस्तिका धाम माताश्री चिंतपूर्णी। मान्यता अनुसार इस स्थान पर विष्णुचक्र द्वारा कटे सती के शरीर के चरण पड़े थे। प्रसिद्ध शक्तिपीठ माताश्री चिंतपूर्णी का मन्दिर ज़िला मुख्यालय ऊना से 50 किलोमीटर की दूरी पर अम्ब उपमण्डल के भरवाईं से तीन किलोमीटर दूर चिंतपूर्णी में स्थित है।
मान्यता के अनुसार देवी भक्त माईदास के पिता दुर्गा माता के परम्भक्त थे और माई दास भी अपने पिता की भांति दुर्गा मां का अनन्य भक्त था। माईदास के दो भाई इसे पसन्द नहीं करते थे। पिता ने अपने जीते-जी ही माईदास की शादी करवा दी थी और उसकी पूजा भक्ति से प्रसन्न होकर वह उसके परिवार का पूरा ध्यान रखते थे। लेकिन जब पिता जी स्वर्ग सिधार गये तो दोनों भाइयों ने उसे अलग कर दिया। माईदास के परिवार पर अनेक मुसीबतें आई परंतु उसकी आस्था मां दुर्गा में अटूट बनी रही और उसका विश्वास था कि मां दुर्गा की कृपा से सब कुछ ठीक हो जाएगा। माईदास का ससुराल पीरथीपुर नामक गांव में था। उन दिनों यातायात की सुविधाएं नहीं थी। अधिकांश सफर पैदल ही करना पड़ता था। एक बार जब माईदास छपरोह से गुजर रहा था तो वह यहां पर स्थित वटवृक्ष के नीचे विश्राम करने के लिए लेट गया। कुछ समय पश्चात उसे नीद आ गई। उसी स्वप्न में एक कन्या के दर्शन हुए। कन्या ने स्वप्न में माईदास से कहा कि तुम मेरी यहां नित्य प्रेम पूर्वक अराधना आरंभ करो। स्वप्न टूटने पर माईदास को कुछ भी दिखाई नही दिया। उसके उपरांत वह अपने ससुराल चला गया। रात को बिस्तर पर लेटने पर लाख कोशिश करने के उपरांत भी उसे नींद नहीं आईं तो अंत में वह रात्रि के समय ही ससुराल से छपरोह आ पहुंचा तथा यहां आकर मां के आगे विनम्रता पूर्वक प्रार्थना करने लगा कि मां अगर तुम सच्ची हो तो तुम मुझे अभी दर्शन दो। माईदास की प्रार्थना से सम्पन्न होकर माता ने कन्या रूप में दर्शन दिए और कहा कि चिरकाल से यहां स्थित वटवृक्ष के नीचे मेरा घर है, तुम यहां पूजा अर्चना शुरू कर दो। यहां पर पूजा अर्चना करने से तुम्हारे और अन्य सभी लोगों के कष्ट एवं चिंताएं खत्म हो जाएंगी। माईदास ने कन्या से कहा कि न ही यहां मेरे रहने की कोई व्यवस्था है और न ही पीने के लिए पानी का प्रबंध है। यह सुनकर कन्या ने कहा कि मैं सभी लोगों के ऊपर अपना प्रकाश डालूंगी, जिससे वे यहां मेरा मंदिर बनाएंगे। यहां से 50 गज की दूरी पर पहाड़ी के नीचे एक पत्थर को उखाड़ने से पानी की समस्या का समाधान हो जाएगा। कन्या ने कहा कि मेरी पूजा के समस्त अधिकार आपके तथा आपके परिवार के होंगे। आपके वंश के लिए किसी प्रकार का सूतक-पातक का बंधन नहीं होगा। यहां पर किसी प्रकार का गलत अत्याचार या गलत कार्य होने पर, मैं किसी भी कन्या में प्रेवश कर आपकी समस्या का समाधान करूंगी। तदपश्चात कन्या पिंडी के रूप में लुप्त हो गई।
एक प्राचीन वटवृक्ष की छाया तले मां का भव्य मंदिर बना है जिसमें मां के प्रतीक के रूप में माता की पिंडी विद्यमान है। इस सिद्ध शक्तिपीठ धाम को आमतौर पर सभी माता श्री चिंतपूर्णी के नाम से जानते हैं।
एक अन्य प्रचलित कहानी के अनुसार चिंतपूर्णी मंदिर में एक तालाब है जिसका जीर्णाउद्धार महाराज रणजीत सिंह ने करवाया था। मंदिर के प्रागंण में स्थित वटवृक्ष अती प्राचीन है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां स्थित वटवृक्ष की शाखाओं में डोरियां बांधने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। माता श्री चिंतपूर्णी में प्रत्येक वर्ष श्रावण अष्टमी, चैत्र एवं आश्विन के नवरात्रों में मेले लगते हैं। इस दौरान यहां देश के विभिन्न कोनों से लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं और माता श्री चिंतपूर्णी में शीश निभाते हैं। यह भी सत्य है कि मां अपने श्रद्धालुओं की चिंताएं दूर करके उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और उनके आंचल को खुशियों से भर देती है।


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By HIMSHIKHA NEWS

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